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47. स्वार्थ

  1. ॐ श्री परमात्मने नमः।
  2. प्रत्येक मनुष्य के अन्दर स्वार्थ होता है।
  3. स्वार्थ के बिना कोई कार्य नहीं होता।
  4. स्वार्थ के दो प्रकार होते है। एक व्यवहारिक और दूसरा अव्यवहारिक।
  5. सिमित-स्वार्थ जो उपजीविका के लिए किया स्वार्थ, व्यवहारिक है।
  6. जैसे कोई दूकानदार सीमित मुनाफ़ा लेकर सामान बेचता है तो वह व्यवहारिक कहा जाएगा। अगर वह दुगना, तिगना मुनाफ़ा लेगा तो यह अव्यवहारिक कहा जाता है।
  7. भ्रष्टाचार करना, किसी भी प्रकार से सत्ता प्राप्त करना, किसी की सम्पत्ति लूटना, तकलीफ देना, चोरी करना, धोखा देना, ज्यादती करना इ. प्रकार के अव्यवहारिक स्वार्थ है।
  8. स्वार्थ बड़ा शक्तिशाली होता है।
  9. एक स्वामी ने एक उदाहरण बताया, उन्होंने कहा की उनके पास दो मुर्तिया है एक भगवान राम की और दूसरी रावण की। अगर आपको इसमें से कोई एक मूर्ति लेने के लिए कहा जाए, तो आप कौनसी मूर्ति लेंगे? निःसंशय आप राम की मूर्ति लेंगे?  है ना ? क्योंकि राम आपके लिए आदर्श है। वे भगवान है। किन्तु अगर मैंने कहा की भगवान राम की मूर्ति लकड़ी की है और रावण की मूर्ति सोने के धातु से बनी है, तो आप कौनसी मूर्ति लेंगे ?
  10. मनुष्य कितना भी पढ़ा लिखा हो किन्तु जब उसके मन में स्वार्थ उत्पन्न होता है, तो वह उसके ऊपर किसी भी तरह के उपदेशों का कोई असर नहीं होता।
  11. मनुष्य हमेशा अपने स्वार्थ के अनुरूप ही कार्य करता है, और किसी व्यक्ति या मार्ग का चुनाव करता है।
  12. व्यक्ति कितने भी पढ़े लिखे हो, बुजुर्ग हो, या समझदार हो, फिर भी वे स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते है।
  13. बहुत कम लोग होते है जो स्वार्थ को त्यागते है और अपने सिद्धांत पर टिके रहते है। जिनके लिए धर्म, देश और संस्कृति सर्वोपरि होती है। वे धर्म, देश और संस्कृति के लिए सबकुछ त्याग देते है। ऐसे लोग ही संत, महात्मा और वीर कहे जाते है।
  14. स्वार्थ मनुष्य के मन में होता है। उसे अपने सिद्धांतो, धर्म, देश, संस्कृति पर हावी न होने दें। अव्यवहारिक स्वार्थ का त्याग ही व्यक्ति को मनुष्य बनाता है।

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