धर्म मार्गदर्शन

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39. विवाह

  1. ॐ श्री परमात्मने नमः।
  2. ईश्वर परमदयालु परमात्मा है।
  3. सम्पूर्ण भक्ति, प्रशंसा ईश्वर को समर्पित है, वह जगत का ईश्वर है।
  4. इसमें कोई संदेह नहीं कि यह किताब सत्यमार्ग पर चलने की शिक्षा देती है।
  5. यह सारी सृष्टि ईश्वर ने निर्माण की है।
  6. ईश्वर ने स्त्री-पुरुष को निर्माण किया है। इन दोनों को नैतिकता से रहने के लिए विवाह की व्यवस्था दी है।
  7. विवाह करने से घर में एक नई स्त्री आती है। बिना स्त्री घर नहीं होता, वह मठ है।
  8. घर-परिवार को तभी शोभा आती है जब उसमे स्त्री होती है।
  9. स्त्री का उचित सन्मान करने से परिवार में सुख-समृद्धि रहती है। जहा स्त्री सताई जाती है, आंसू बहाती है, वह परिवार नष्ट हो जाता है।
  10. पुरुष एकपत्नीव्रत बने और स्त्री एकपतिव्रत बने, यह परिवार के सुखशांति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
  11. व्यभिचार करनेवाले स्त्री-पुरुष अल्पायु होते है। उनकी आकस्मिक मृत्यु होती है अर्थात वे ६० वर्ष की आयु होने से पहले ही दुनिया छोड़ते है।
  12. स्त्री कैसी भी हो उनसे मीठे शब्द बोलो, उनका आदर करो। कुछ स्त्रियां बुरी होती है, अश्लील होती है, घिनौनी हरकते करनेवाली होती है, फिर भी तुम उनका आदर करो। मात्र उनसे दूरियां रखो, अन्यथा दुःख भोगोगे।
  13. कुछ स्त्रीयां मन से दुर्बल होती है, वह बुरे लोगों के जाल में आसानी से फस सकती है, वे तुरंत लुभाती है, प्रेम के लिए कुछ भी कर सकती है। कुछ ऐसी भी होती है जिनका मन मलिन होता है, परिवार में अप्रसन्नता फैलाती है। तुम उन्हें समझाओ।
  14. प्रेम करनेवाला पति अपनी अविश्वासी पत्नी को भी संतुष्ट कर सकता है, वह उसे बरबादी से बचा सकता है।
  15. अच्छी पत्नी वही है जो पुरुष के अच्छे और बुरे समय में साथ देती है।
  16. प्रत्येक स्त्री उसके परिवार के लिए प्रिय होती है, इसलिए उनकी निंदा, चेष्टा या उन्हें अपमानित मत करो।
  17. विवाह करने से संतान होती है, आनेवाली पीढ़ी का निर्माण होता है, यह सहीमायने में समाज और देश का निर्माण होता है।
  18. विवाहित लोग अपने अंदर सहृदयता, धैर्य, सत्यता, प्रेम और संतुष्टता को विकसित करें, तभी वे प्रसन्नता, शांति और समृद्धि को अपने घर में ला सकते है। अन्य लोगों की देखा-देखी न करें, अन्यथा दुःख भोगोगे।
  19. स्त्री के पावित्र की रक्षा ना घर, ना अंगरक्षक, ना बुरका, ना ही राजघराना करता है, बल्कि उसके संस्कार ही उसे पवित्र रखते है।
  20. घर को संवारने में सबसे बडा योगदान स्त्री का ही होता है।
  21. पत्नी पुरुष की अर्धांगिनी होती है, वह मित्र है, वह धर्म का मूल है तथा मोक्ष का भी। धर्मनिष्ट पत्नी अच्छी तरह से घर संभालती है, इसलिए तुम धर्मनिष्ट पत्नी की कामना करों।
  22. जो स्त्री धर्म का पालन नहीं करती उस स्त्री से विवाह मत करों। अथवा उन्हें धर्मनिष्ट बनाये,  तभी विवाह करें।
  23. स्त्री की धर्मनिष्टता, पावित्रता में इतना सामर्थ्य होता है कि वह पति को गलत मार्ग पर जाने से रोकता है।
  24. विवाहित स्त्री-पुरुष अपने घर में आनेवाले अतिथियों को, रिश्तेदारों को भोजनदान करें, यह पुण्यकर्म है।
  25. वे अपनी कमाई से जादा खर्च न करें। किसी से उधार मत लें। कमाई का कुछ हिस्सा धर्म तथा समाजसेवा के लिए खर्च करें।
  26. कामवासना में समतोल रखें। धर्म प्रवचन सुने, सत्संग करें। सादगी से रहे।
  27. बच्चों पर अच्छे संस्कार करें। माता-पिता को देखकर ही बच्चे सिखते है, इसलिए स्वयं अच्छा व्यवहार करें।
  28. वैवाहिक जीवन में सम्यक आचरण रखो, किसी भी चीज की जादती मत करो, वर्ना दुःखी बनोगे।
  29. पत्नी का सभी तरह से शारीरिक और नैतिक रक्षण करने से, अपनी संतति, अपना चारित्र्य, अपना कुल, अपना शरीर और अपना धर्म इन सभी का अपनेआप रक्षण होता है।
  30. कुछ युवा संभ्रम में होते है कि विवाह करे या ना करे। किन्तु कामवासना में तडपने से अच्छा है विवाह करना। क्योंकि स्वैराचार करनेवाले स्त्री-पुरुष शांत और सुखी नहीं हो सकते, उन्हें कई बिमारिया होकर वे अल्प-आयु के होते है।
  31. कोई भी परस्त्री/परपुरुष की कामना न करें, उनका चिंतन न करें, उनके पीछे न पडे, इससे मुढावस्था, एकतरह की मानसिक बीमारी हो सकती है जिससे मनुष्य जिवनविनाश/आत्महत्या कर सकते है। समय रहते ही अपनेआप को संवारे। समय पर विवाह करें और जीवनसाथी से एकनिष्ट रहें।
  32. जितने भी महापुरुष उत्पन्न हुए है, उनके माता-पिता ने विवाह किया था। तुम भी विवाह करो अच्छी संतति उत्पन्न करो।
  33. जहाँ स्त्रियों पर अत्याचार होता है वहाँ स्त्रीयां गलत रास्तों पर जाती है। इसलिए उन्हें गुलाम न समझे। उन्हें न दबाए, न ढके और ना स्वैराचारी बनाये।
  34. तलाक तथा संपत्ति का अधिकार इसपर कानून बनाना यह धर्म का कार्य नहीं है। शासन का कार्य है।
  35. स्त्रियां बच्चों जैसी मासूम होती है, उनसे प्रेम करो, उनकी रक्षा करो, उन्हें अनुशासित करो अन्यथा दुःख भोगोगे।
  36. काया, वाचा, मन, धन तथा आभूषण से स्व-स्त्री को सदैव सुख देना, तथा उसका उचित सन्मान करना ही पुरुष-कर्तव्य है।
  37.  कुछ लोग वासना की तृप्ति के लिए विवाह करते है, तो कुछ लोग जीवनसाथी मिलने के लिए विवाह करते है, तो कुछ लोग संतान प्राप्त करने के लिए विवाह करते है।
  38.  विवाह करने से मनुष्य को सुख-दुःख में साथ देनेवाला साथी मिलता है, एक मित्र मिलता है और वंश को आगे बढ़ाने के लिए सहायक तथा बुढ़ापे में साथ देनेवाला एक साथी मिलता है।
  39. विवाह यह नैतिक-जीवन जीने की एक पद्धति है। यह गृहस्थाश्रम है जो सभी आश्रमों में श्रेष्ठ  है।

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